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कविता

पीठ

महेश वर्मा


अनंत कदमों भर सामने के विस्तार की ओर से नहीं
पीठ की ओर से ही दिखता हूँ मैं हमेशा जाता हुआ।
जाते हुए मेरी पीठ के दृश्य में
पूर्वजों का जाना दिखता है क्या?
तीन कदमों में तीन लोक नापने की कथा
रखी हुई है कहीं, पुराने घर के ताखे में।
निर्वासन के तीन खुले विकल्पों में से चुनकर
अपना निर्विकल्प, अब मैं ही था सुनने को
निर्वासन के आत्मगत का मंद्रराग।
यदि धूप और दूरियों की बात न करें हम
जाता हुआ मैं सुंदर दिखता हूँ ना?


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